बादलों के घर मे पानी की कमी है
धरती के कलेजे में थोड़ा सा नमी है
धूप खिल रही है मगर कुहासे में छिप गयी हैं
तभी तो गर्मी हमे रह रह कर लग रही हैं
पेड़ में अब हमें छाँव न दिखी है।।
बदलो से बारिश की एक बूंद गिर रही है
आसमान बिजली से हमको डरा रही हैं
चाँद भी हमसे मुँह छुपा रही हैं
पर्वतो की ऊंचाइयां क्यों कम हो रही है।।
हिमाचल भी पिघल कर सागर में जा मिला
सागर भी सुनामी से हमको क्यों बहा रहा
कोई तो बताये हमे ऐसा क्यों हो रहा हैं
जो छेड़छाड़ प्रकृति से हो रही हैं
उसी का फल मिल रहा हैं
उसी का कल दिख रहा हैं ।।
आज भी सम्भलने का मौका मिल रहा हैं
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