आज मुझे फिर से उनकी बाँहो की याद सताती है,
आज मुझे फिर से उनकी बाँहो की याद सताती है,
जब मैं उनसे दूर हुई तो उनकी याद क्यों आती है।
उनका भोलापन क्यों भूल गयी थी मैं
गैरो की बाँहो में क्यों झूल गयी थी मैं ।।
क्या था उनकी बाँहो में जो फिर से मुझे बुलाती है
आज मुझे फिर से उनकी बांहों की याद सताती हैं ||
उनका भोला चेहरा उनकी प्यारी बातें
उनके संग गुजारी थी मैंने प्यारी प्यारी रातें
फिर से वैसे रातों की क्यों मुझे याद सताती है
अब मुझे उनकी बांहों की याद सताती हैं ||
उनके संग मेरा रहना उनसे ही बाते करना
मुझको बहुत अच्छा लगता है
उनको एक पल न देखूँ तो डर से लगता है
हर साँस मर्ज अब बस उन्हें बुलाती है।
अब मुझे फिर से उनकी बाहों की याद सताती है।।
लालच
लालच पर जीना
लालच पर मरना
लालच बुरी है
लालच कमीना
लालच है सबको
सबसे है प्यारी
लालच है सबकी
सबसे बड़ी बीमारी
लालच ने लूटा कितनो का घर
लालच से होते कितने बेघर
लालच न कर मेरे भाई
लालच से होती है रुसवाई
लालच को छोड़ो लालच बीमारी
लालच से घटती है दुनिया दारी
लालच ने अपने भाई बहन को भी लूटा
लालच से सबका रिस्ता है टूटा ।।
क्यों भूल गए हैं गाँव को
क्यों भूल गए हम गांव को
पीपल की ठंडी छाँव को
बारिश में कागज की नाव को ।।
मेढक की टर्र टर्र टर्र को
ठंडी की थर थर थर को
झरनों की झर झर झर को ।।
सावन के उन झूलो को
सरसों के पीले फूलों को
मीठे मीठे बेरों को
खलियानों के उन ढेरों को।।
क्यों भूल गए हम गांव को।।
जुगनू के जगमग को
गांवों के उस पनघट को
सूरज की खिलती लाली को
झूलों से हिलती डाली को
क्यों भूल गए हम गांव को।।
कोयल की कू कू को
गर्मी की जलती लू को
फूलों की उस खुश्बू को
लू पसीने की उस बदबू को
क्यों भूल गए हम गांव को।।
दादी नानी की कहानी को
बारिस में बहते पानी को
चाँद तारों की ठंडक को
शादी के मंडप को
बारातियों के डांस को
सारी गिलाये भूल गयी मैं
सारी गिलाये भूल गयी मैं
जब से पिया तूने हाथ है पकड़ा
तुमने मुझे जब गालों पर
अपने ओठो से है जकड़ा
लाज के मारे कांप गयी मैं ।।
तुमने जब मुझको अपनी तरफ है खिंच लिया
मेरे ओठो को अपने ओठो से जब तुमने भीच लिया
शर्म से में फिर लाल हुई मैं ।।
उन सखियों को मैं क्या कहती
जिसने सब कुछ देखा है
बार बार वो पूछ रही हैं
क्या पिया तेरा अलबेला हैं
क्या कहती उनसे मैं
शर्म से मैं फिर भाग गयी।।
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